पता नहीं यह कैसा लगेगा... मात्र-भाषा जरूर है, पर फिर भी एक दूरी सी है हिन्दी से... शायद इसलिए कि आखरी बार हिन्दी में कुछ ज़्यादा लिखा था करीब १२ साल पहले... तब से आज तक कहीं कुछ लिखवाया गया है तो इंग्लिश में... शायद ये इसी देश में होता होगा। कहते हैं किसी चीज़ की एहमियत तभी पता चलती है जब उससे दूरी काफ़ी बढ़ जाती है। आज हिन्दी में ये ब्लॉग पोस्ट लिखते हुएऐसा लग रहा है मानो किसी और को लिखते हुए देख रहा हूँ। ज़्यादा लिख भी नहीं पाऊँगा। चार वाक्यों में ही ऐसा लग रहा है जाने कितना लिख लिया हो।
लेकिन सच कहें तो एक अलग ही मज़ा है... बस देखना ये है कि कितनी बार हम ये आनंद उठाने के काबिल पायेंगे ख़ुद को...
2 comments:
Reading this somehow reminded me of some verses of Dipti Naval I read quite a few years ago...
And it wasn't bad my dear Seth... I am sure if your try you will do a very good job with Hindi as well!
-Anshu
बहुत सुंदर प्रयास है देवनागरी में लिखने का. सच कहा, मातृभाषा की अवहेलना बस हमारे ही देश में होती है. मुझे प्रसन्नता होगी अगर तुम ऐसे ही लिखते रहोगे. तुमने वो ग़ज़ल तो सुनी ही होगी - "मिली हवाओं में उड़ने की ये सज़ा यारों, कि मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों".
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